कथा वाचक पल्लवी पुरोहित बोलीं
Wardha वर्धा, 28 जून :- “इस दुनिया में हम कुछ भी साथ लेकर नहीं आए, जो कुछ लिया या बनाया सब का सब यही से लिया गया है। हम जब पुनः संसार से विदा होंगे, तब भी सिकंदर के भांति खाली हाथ ही लौट जाएंगे।” इस तरह का प्रतिपादन सौ. पल्लवी पुरोहित ने मोहिनी नगर में स्थित सौ. रेखा जीभकाटे के निवास स्थान पर आयोजित मत्स्य महापुराण भागवत कथा के व्यासपीठ से किया।
कथा को आगे बढ़ाते हुए पल्लवी ने कहा कि, “जो व्यक्ति आलसी होता है और कभी काम नहीं करता, वह भूखा मरता है। केवल भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाला मनुष्य कभी भी जीवन में सफल नहीं होता। उस मनुष्य से श्री वृद्धि व समृद्धि सदैव रूठी रहती है।”
प्राचीन काल एवं वर्तमान काल के युद्ध के हालातों पर टिप्पणी करते हुए पल्लवी ने कहा, “प्राचीन काल में तीर-कमान से युद्ध लड़े जाते थे और आजकल हवाई जहाज एवं बारूद से!”
राज्य व्यवस्था की चर्चा करते हुए पुरोहित ने कहा कि, “एक राजा को सदैव कौवे की भांति चौकस रहना चाहिए। प्राचीन काल में राज्य का पूरा अस्तित्व एकमात्र राजा पर ही निर्भर रहता था। यदि वह संकट में आ जाता था तो सारी राज व्यवस्था खंड-खंड हो जाती थी। इसलिए राजा को अपनी सुरक्षा के लिए सदैव सजग रहना पड़ता था।”
वर्तमान संदर्भ में गीता सार की विस्तृत व्याख्या करते हुए पल्लवी ने कहा कि, “परिवर्तन संसार का नियम है। आज जो हमारा है, कल किसी और का था और परसों किसी और का हो जाएगा। मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है और उसे कोई रोक नहीं सकता। यह परमात्मा की लीला है कि कब वह किसको राजा से रंक बना दे और कब राई से पहाड़ की निर्मिति कर दे। इसलिए हमें अपने जीवन से ‘मैं’ को निकाल देना चाहिए।”
“यह शरीर पांच तत्वों से बना है – अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। अंत में इसी में शरीर का मिल जाना तय है। इसलिए जितना हो सके भलाई के मार्ग पर हमें चलना चाहिए,” पल्लवी ने कहा।
यह मत्स्य महापुराण का द्वितीय दिवस था। प्रतिदिन डेढ़ घंटे तक कथा चलती है। धर्म के प्रति बढ़ती आस्था के कारण श्रोताओं की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ रही है।
इस आयोजन को सफल बनाने के लिए रोहिणी लिखितकर, रेखा केदार, सुनंदा दाऊतखानी और समस्त मोहिनी नगर निवासियों ने परिश्रम किया है।
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