मत्स्य पुराण कथा

  • पल्लवी पुरोहित ने बताया हिंदू पुराणों का महत्व
  • मोहिनी नगर, वर्धा में कथा का आयोजन
  • श्री जीभकाटेजी के निवास स्थान पर कथा
  • पुराणों का सारगर्भित महत्व बताया

Wardha वर्धा 27 जून : मोहिनी नगर स्थित श्री जीभकाटे जी के निवास स्थान पर सात दिवसीय श्रीमद् भागवत मत्स्य पुराण कथा का आयोजन हो रहा है। इस कथा के प्रथम दिन की शुरुआत विख्यात निवेदिका और लेखिका, सौ. पल्लवी पुरोहित के उद्घाटन भाषण से हुई। उन्होंने पुराणों के महत्व और भारतीय संस्कृति में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला।

पल्लवी पुरोहित ने कहा, “हमारे भारतीय पवित्र संस्कृति में पुराण ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म का पूर्ण परिचय देते हैं। ये पुराण मनुष्य की जीवन शैली को सही रास्ता दिखाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को समर्पित 18 पुराणों में से 16वां पुराण है मत्स्य पुराण।”

उन्होंने श्रोताओं को बताया कि वेदों से भी पूर्व जिन शब्दों को स्मृति में संजोया गया, वही पुराण हैं। ये प्राचीनतम धरोहरें हैं, जिन्हें व्यास जी ने 18 खंडों में विभाजित किया है। इन महान धर्म ग्रंथों में सृष्टि, लय, मन्वंतर, ऋषि-मुनि और राजाओं के वंश तथा चरित्रों का वर्णन है। भारतीय जीवन शैली, भक्ति मार्ग और कर्मयोग का पुराणों में अद्भुत समन्वय मिलता है।

मत्स्य पुराण का महत्व

मत्स्य पुराण पर भाष्य करते हुए पल्लवी पुरोहित ने बताया कि प्रलय काल के समय भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) का अवतार धारण किया था। इसीलिए इसे मत्स्य पुराण कहा जाता है। उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्यावतार का कारण था कि हयग्रीव नामक राक्षस ने चारों वेद चुरा लिए थे, जिससे संसार में अज्ञान और अधर्म बढ़ने लगा था। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर राक्षस का संहार किया और वेदों को पुनः ब्रह्मा जी को सौंप दिया।

राजर्षि सत्यव्रत की नौका पर जीवित बचे सप्तर्षि और छोटे-मोटे जीवों के माध्यम से पुनः सृष्टि का निर्माण करवाया गया। राजर्षि सत्यव्रत को वेदों का ज्ञान दिया गया। कथा के अंतिम चरण में पल्लवी ने संदेश दिया कि मनुष्य को अतीत से सीख लेकर वर्तमान में जीना चाहिए और भविष्य की चिंता में खुद को नहीं जलाना चाहिए।

विदित हो कि यह कथा प्रतिदिन दोपहर 4 से 6 बजे तक चलेगी।

संपूर्ण ज्ञान और आत्मविकास का स्रोत

मत्स्य पुराण जैसी कहानियाँ न केवल भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं, बल्कि ये जीवन जीने की कला और आत्मविकास का मार्ग भी दिखाती हैं। सात दिवसीय इस कथा में भाग लेकर श्रद्धालु न केवल अपने आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि कर सकते हैं, बल्कि वे अपने जीवन को भी सही दिशा में ले जा सकते हैं।

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