- भाजपा उम्मीदवार लगातार जीत रहे
- नगर पालिका, और जिला परिषद में भाजपा राज
- वर्धा में कमजोर हो गई है कांग्रेस
- अंतर्गत कलह ने किया कमजोर
- जितने के लिए कांग्रेस को करनी होगी मेहनत
wardha वर्धा : कांग्रेस का गढ रहा वर्धा संसदीय क्षेत्र अब आरएसएस के कब्जे में है. यहां पर अब भाजपा के उम्मीदवार भारी वोटों से जीत रहे हैं. भाजपा ने विशेष रणनीति के तहत ओबीसी वोटों को अपनी तरफ खींच लिया है. इसका असर चुनावों में दिख रहा हैं. 1952 में वर्धा लोकसभा क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा था. अब यह सीट महाराष्ट्र में है. यहां कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1989 तक 9 बार जीत दर्ज करके 40 वर्षों तक लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. वर्धा में लोकसभा के लिए हुए 17 चुनावों में कांग्रेस ने 12 बार जीत दर्ज की है. अब यहां भाजपा का भगवा लहरा रहा है. वर्धा महाराष्ट्र का ही नहीं बल्कि देशभर के लिए महत्वपूर्ण शहर है, क्योंकि यह भूमि महात्मा गांधी और भूदान प्रणेता आचार्य विनोबा भावे के पदस्पर्शों से पुणित है. सेवाग्राम में बापू का आश्रम, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय और पवनार के परमधाम आश्रम को देखने के लिए विश्वभर से लोग आते हैं. गांधी आश्रम, गांधी हिल, विश्व शांति स्तूप, गीताई मंदिर, बोर टाइगर रिजर्व, महाकाली धाम, पंचधारा डैम यहां के दर्शनीय स्थल है. वर्धा में बाहर से आए लोगों को स्थानीय खानपान भी खूब भाता है. यहां का झुणका भाकर खास है. इसके साथ ही गोरसपाक भी बहुत स्वादिष्ट है. गोरसपाक एक बिस्किट है जो सिर्फ वर्धा में ही तैयार होता है. इसे शुद्ध घी से कुटीर उद्योग में तैयार किया जाता है.
कभी कांग्रेस का किला था वर्धा
बात राजनीति की करें तो 1952 में हुए चुनाव में वर्धा संसदीय क्षेत्र मध्यप्रदेश राज्य का हिस्सा था अब यह महाराष्ट्र का हिस्सा है. 1989 तक कांग्रेस पार्टी ने यहां लगातार जीत दर्ज की.1952 से 1989 तक लगातार 9 बार जीत कर 38 सालों तक कांग्रेस ने लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. वर्धा में लोकसभा के लिए हुए 17 चुनावों में कांग्रेस
अब यहां भगवा लहरा रहा है
2019 में यहां बीजेपी के रामदास तड़स ने जीत दर्ज की है. तड़स की यह दूसरी जीत है.2019 में बीजेपी उम्मीदवार ने कांग्रेस की कद्दावर नेता प्रभा राव की बेटी एवं कांग्रेस की चारुलता टोकस को 1,87,191 वोटों से हराया. तड़स को 578,364 जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को 3,91,173 वोट मिले थे. तीसरे स्थान पर वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवार धनराज वंजारी रहे. उन्हें 36,452 वोट मिले थे. 2014 में यहां रामदास तड़स ने कांग्रेस के सागर मेघे को हराया था. रामदास तड़स को 5,37,518 जबकि सागर मेघे को 3,21,735 वोट मिले बीएसपी के चेतन पेंदाम 90,866 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
वर्धा का चुनावी इतिहास
1952 के पहले चुनाव में वर्धा में कांग्रेस पार्टी के श्रीमन नारायण अग्रवाल ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1957, 1962, 1967 में तीन बार कांग्रेस पार्टी के ही कमलनयन बजाज सांसद चुने गए. 1971 में कांग्रेस पार्टी के जगजीवनराव कदम, 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भी काग्रेस पार्टी के संतोषराव गोडे. फिर 1980, 1984 और 1989 में कांग्रेस की टिकट पर वसंत साठे संसद पहुंचे. 1991 में कांग्रेस के इस किले को भेदा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने. तब भाकपा के रामचन्द्र घंगारे ने जीत दर्ज की. 1996 में यहां बीजेपी का खाता खुला और आरएसएस के स्वयंसेवक विजय मुडे ने जीत दर्ज की. 1998 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और दत्ता मेघे ने जीत दर्ज की. 1999 में कांग्रेस के प्रभा राऊ सांसद बने. 2004 में बीजेपी के सुरेश वाघमारे, 2009 में कांग्रेस के दत्ता मेघे. 2014 और 2019 में यहां बीजेपी के रामदास ताड़स सांसद चुने गए हैं. यहां हुए 17 चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 12 बार. बीजेपी ने चार बार जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने एकबार जीत दर्ज की है.
वर्धा संसदीय क्षेत्र का वोट गणित
वर्धा में अभी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. वर्धा की राजनीति के बारे में कहा जाता है कि यह अपने परिणाम से हमेशा चौकाता है. यहां जो उम्मीदवार जीतता नजर आ रहा होता है. वह चुनाव हार जाता है. वर्धा लोकसभा में 6 विधानसभा- आर्वी, हिंगनघाट, देवली, मोर्शी, धामनगांव रेलवे और वर्धा हैं. यह एक ग्रामीण संसदीय क्षेत्र है. यहां की साक्षरता दर 86.76 प्रतिशत है. वर्धा में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 15.47% और अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 10.84% है. बीजेपी ने यहां रामदास तड़स का जीत का हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतारा है,